भगत सिंह जीवनी : भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक युवा एवं क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अपना बलिदान देकर भारतीय युवाओं के अंदर भारत की आजादी का जुनून भर दिया भगत सिंह का जन्म सन 27 सितंबर 1960 ईस्वी को पंजाब के बंगा गांव, जिला लालपुरमें हुआ था|
इनकी माता का नाम विद्यावती एवं पिता का नाम किशन सिंह था, पिता किसान थे एवं अपनी छोटी सी जमीन पर खेती किया करते थे, भगत सिंह ने लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में दाखिला लिया। महात्मा गांधी के आह्वान के जवाब में भगत सिंह ने सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों का बहिष्कार किया, उन्होंने अपना स्कूल छोड़ दिया और 1923 में लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया।
नाम | भगत सिंह |
जन्म | 27 सितंबर, 1907 |
जन्मस्थान | पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) |
शिक्षा | दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल और नेशनल कॉलेज |
शहीद | 23 मार्च, 1931 |
भगत सिंह बचपन से ही काफी बहादुर थे और उनके अंदर देश प्रेम की भावना बचपन से ही थी जब वो अंग्रेजों को देखते थे भारतीयों पर अत्याचार करते हुए तो उन्हें काफी बुरा लगता था एक बार की बात है जब भगत सिंह बचपन में अपने मित्र के साथ खेल रहे थ मित्र के साथ खेल रहे थे उसी वक्त उन्हें किसी ने बताया कि अंग्रेज उनके पिता के साथ बदसलूकी कर रहे हैं तो वह दौड़ कर गए देखने के लिए जहां पर उन्होंने देखा की,
अंग्रेजों ने उनके पिता का गिरेबान पकड़ रखा था और इसे देखते ही भगत सिंह ने अपना आपा खो दिया और नीचे पड़े पत्थर से उस अंग्रेज अधिकारी के सर पर दे मारा बाद में इसके लिए उनके परिवार को काफी कुछ सहना पड़ा और उन्हें उस जगह को छोड़कर जाना भी पड़ा ।
13 साल की उम्र में, भगत सिंह ने क्रांतिकारी बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया, 1926 में उन्होंने युवाओं में क्रांति की भावना जगाने के लिए लाहौर में नव जवान भारत सभा की स्थापना की। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए, एक कट्टरपंथी समूह, जिसे बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में नाम दिया गया था।
30 अक्टूबर 1928 को, साइमन कमीशन के लाहौर पहुंचने पर, लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय जुलूस, एक विरोध प्रदर्शन करने के लिए रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा। जुलूस की व्याख्या करते हुए, पुलिस ने लाठीचार्ज किया और लाला लाजपत राय को चोटें आईं। एक पखवाड़े बाद उनकी मृत्यु हो गई।
उस घटना का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ पुलिस अधीक्षक श्री स्कॉट की हत्या की साजिश रची। लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान उन्होंने पहचान में गलती के कारण जेपी सॉन्डर्स, एक सहायक पुलिस अधीक्षक की हत्या कर दी।
भगत सिंह जीवनी
भगत सिंह गिरफ्तारी से बचने में सफल रहे और कलकत्ता भाग गए। वह कई महीनों तक चुप रहा, लेकिन फिर से सक्रिय हो गया जब दिल्ली में सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक और व्यापार विवाद विधेयक पर बहस हो रही थी। उन्होंने सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम बनाने की योजना बनाई।
उन्होंने इस कार्य के लिए बटुकेश्वर दत्त के साथ भागीदारी की। 08 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बी.के. दत्त ने निरंकुश शासन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका। वे क्रांति के नारे लगा रहे थे और असेंबली हॉल में पर्चे फेंक रहे थे।
बमबारी के बाद, उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। परीक्षण के समय, भगत सिंह ने कोई बचाव पेश नहीं किया। 23 मार्च 1931 को, भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई थी। उनके शरीर का गुपचुप तरीके से हुसैनीवाला में अंतिम संस्कार किया गया और अवशेष सतलज नदी में फेंक दिए गए।
भगत सिंह को उनकी शहादत के लिए चुना गया है, और ऐसा ही सही, लेकिन आगामी उत्साह में हम में से ज्यादातर लोग भूल जाते हैं, या एक बौद्धिक और एक विचारक के रूप में उनके योगदान को जानबूझकर अनदेखा करें।
उन्होंने न केवल अपने जीवन का बलिदान किया, जैसे कई लोगों ने किया उसके पहले और उसके बाद भी, लेकिन उसे भी स्वतंत्र भारत का विचार था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, यह लगभग है भगत सिंह को एक राष्ट्रवादी आइकन के रूप में उपयुक्त करने के लिए एक दिनचर्या बनें, जबकि उनके राष्ट्रवादी के बारे में ज्यादा बात नहीं की गई है दृष्टि।
भगत सिंह शायद हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एकमात्र हैं, जिनके द्वारा मनाया जा सकता है दोनों भारत और पाकिस्तान। यह संभव है क्योंकि वह एक गैर-संप्रदाय और समतावादी दुनिया के लिए खड़ा था। उन्होंने कभी जासूसी नहीं की उनके छोटे जीवन में कोई भी विभाजनकारी विचार। और उनकी राजनीति को समझाना संभव है क्योंकि उन्होंने काफी पीछे छोड़ दिया लिखित विरासत के साथ जुड़ने के लिए।
भगत सिंह ना सिर्फ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक ऐसे देश भक्त थे जिन्होंने लाखों युवाओं के दिल में स्वतंत्रता भारत की आजादी को लेकर एक ऐसा बीज बो दिया जिसका परिणाम काफी अच्छा निकले आज हमारा देश आजाद है इसके पीछे हम भले ही महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू एवं अन्य नेताओं को मानते हैं लेकिन अगर देखा जाए तो अपने देश के युवाओं के अंदर ऐसा जुनून एवम देश आजादी के लिए जोश भरने का काम भगत सिंह ने किया था ।
उनके इस बलिदान के लिए आज पूरे देश भर में शहीद दिवस के रूप दिवस के रूप में मनाया जाता है उनके साथ राजगुरु सुखदेव को भी फांसी दी गई आज भी इस विषय पर एक बहस होती है कि क्यों नहीं गांधीजी ने उन्हें फांसी से बचाया जबकि ऐसा माना जाता है की उस वक्त अंग्रेजों ने गांधी जी से पूछा था कि क्या इन लोगों को फांसी दे दिया जाए इस पर गांधी जी मौन थे यहां तक कि कांग्रेसी नेताओं ने भी अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है अगर गांधीजी इस फांसी को रोकते तो रुक सकती थी और हमारे वीर भगत सिंह राजगुरु एवं सुखदेव तीनों को बचाया जा सकता था ।
लेकिन कहीं ना कहीं यह एक राजनीतिक चाल भी हो सकती है आज भी इस बात को लेकर कांग्रेसी नेताओं को एवं गांधीजी को दोषी माना जाता है ।
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