संत कबीर दास की जीवनी – कबीर दास भक्ति युग के एक महान और समाज सुधारक संत थे, उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों पर जोर दिया, संत कबीर दास ने मानवता पर चलने का संदेश दिया। कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव की भावना पैदा करने का प्रयास किया, उनका प्रारंभिक जीवन रहस्य भरा हुआ था ऐसा कहा जाता है कि जब वो पैदा हुए थे तब उन्हे,बनारस में एक तटबंध पर छोड़ दिया था और उसे तब नीरू नामक एक मुस्लिम बुनकर ने देखा और अपनाया था। जब वे बड़े हुए तो महर्षि रामानंद के शिष्य बन गए, उसने अपना घर नहीं छोड़ा। वह एक धर्मनिष्ठ गृहस्थ थे और कपड़े बुनकर अपनी आजीविका कमाता थे
पूरा नाम | संत कबीर दास अलियास कबीर |
जन्म | 1398 |
जन्म स्थान | स्वतारा ताल, काशी |
मृत्यु | 1518 (मगहर, उत्तर प्रदेश) |
माता-पिता | नेमारू और नीमा |
पत्नी | लोई |
बच्चों का नाम | कमल (पुत्र), कमली (पुत्री) |
मुख्य रचनाएँ | सखी, सबद, और रमणी भाषा- अवधी, सुधाकड़ी, पंचमल खिचड़ी |
कबीर दास की शिक्षा
कबीरदास की प्रारंभिक शिक्षा स्कूल में नहीं हुई है उन्होंने अध्यात्म की शिक्षा ली है और जब वह शिक्षा लेने के लिए गुरु की खोज में थे तो उन्हें गुरु के रूप में संत स्वामी रामानंदजी मिले और उन्हीं से हालांकि जब वह गुरु के पास शिक्षा लेने के लिए गए थे तो उन्हें गुरु ने नहीं अपनाया था फिर भी एक अच्छे श्रद्धावन शिष्य की तरह संत कबीरदास भी अपने गुरु को अपनी भक्ति से प्रसन्न किया और उसके बाद गुरु ने उन्हें अपना लिया और अध्यात्म एवं वेदों का ज्ञान दिया।
संत कबीर दास जी ने अध्यात्म की शिक्षा गृहस्थ जीवन में रहते हुए लिया उनका यह मानना था कि इंसान जब अपनी जिम्मेदारियों को उठाता है तो वह अपना सबसे बड़ा धर्म निभाता है क्योंकि आपके कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है और जिम्मेदारी से बड़ा कोई विचार नहीं है इसीलिए उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपने परिवार के साथ रहते हुए अध्यात्म की शिक्षा ली और एक संत की तरह जीवन व्यतीत किया।
कबीर दास का के विचार
कबीर दास जी के विचार काफी उचित है क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी भी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया यहां तक कि उन्होंने कभी भी हिंदू मुस्लिम एवं ऊंची नीची जाति जैसे विचार कभी भी अपने मन में नहीं आने दिया और वह हमेशा सबकी मदद करने में लगे रहते थे।
उनके बारे में एक कहानी प्रचलित है जब संत कबीर युवा अवस्था में थे तो उन्हें रास्ते में एक पुजारी घायल अवस्था में दिखा जिसे देखने के बाद वह उन्हें उठाकर अपने साथ ले आए और उनकी सेवा करने लगे या पुजारी अपनी तीर्थ यात्रा पर निकले थे और इसी कारणवश घायल हो गए थे, उन्होंने कभी भी लोगों के बीच अंतर महसूस नहीं किया कि वे वेश्याएँ हैं, नीची जाति की हैं या ऊँची जाति की हैं।
उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से आम नागरिकों के वास्तविक सत्य के प्रति सुधार करना शुरू कर दिया।
उन्होंने कहा कि अच्छाई के माणिक का माणिक की खानों से अधिक मूल्य है। उनके अनुसार, अच्छाई के साथ किसी के दिल में सारी दुनिया की समृद्धि शामिल होती है। दया के साथ व्यक्ति में ताकत होती है, क्षमा का वास्तविक अस्तित्व होता है, और धार्मिकता वाला व्यक्ति कभी भी कभी भी समाप्त होने वाले जीवन को प्राप्त नहीं कर सकता। उसने कहा कि भगवान आपके दिल में है और कभी आपके साथ है, इसलिए उसके लिए अंदर की पूजा की पेशकश करें।
उसने अपने एक उदाहरण द्वारा आम लोगों का मन खोल दिया था कि, अगर यात्री चलने में सक्षम नहीं है; यात्रा करने वाले के लिए सड़क क्या कर सकती है। उसने लोगों की गंभीर आँखें खोलीं और उन्हें मानवता, नैतिकता और आध्यात्मिकता को कम करने के लिए वास्तविक सिखाया। वह अहिंसा के अनुयायी और प्रवर्तक थे। उन्होंने अपने क्रांतिकारी प्रचार के माध्यम से अपने कालखंड के लोगों का मन मोड़ा था। उनके जन्म और परिवार के बारे में कोई वास्तविक प्रमाण और सुराग नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि वह एक मुस्लिम परिवार से था; कुछ लोग कहते हैं कि वह उच्च श्रेणी के ब्राह्मण परिवार से थे। उनकी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार प्रणाली के बारे में मुस्लिम और हिंदू से संबंधित लोगों में कुछ मतभेद था। उनका जीवन इतिहास पौराणिक है और फिर भी, मानव को एक वास्तविक मानवता सिखाता है।
कबीर दास का धर्म
सच्चा धर्म जीवन का एक तरीका है, जिसे लोग जीते हैं और लोगों द्वारा खुद नहीं बनाया जाता है। उनके अनुसार, कार्य पूजा है और जिम्मेदारी धर्म की तरह है।
कबीर जी के अनुसार, “निर्गुण नाम जपहु रे भैया, अविगति की गती लखि न जाईया”
संत कबीर दास ने हिंदू और मुस्लिम के बीच कभी पक्षपात नहीं किया, वह अल्लाह और राम के बीच कभी अंतर नहीं किये।