कृष्णा अष्टमी हिंदुओं का एक पवित्र त्यौहार है। प्रत्येक वर्ष एक निश्चित तिथि को जन्मोत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। इसलिए कृष्णा अष्टमी को जन्माष्टमी भी कहा जाता है।
कृष्णा अष्टमी कैसे मनाई जाती है ?
देश के विभिन्न जगहों पर मूर्ति का निर्माण कर के मेले के रूप में भव्य आयोजन किया जाता है, साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भिन्न-भिन्न प्रकार के झूला एवं विभिन्न तरह का खाने-पीने का खिलौने का दुकान लगाया जाता है। हिंदू धर्म के लोग पूरी श्रद्धा एवं निष्ठा पूर्वक कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना करते हैं साथ ही साथ दही एवं मक्खन मिठाई एवं फल चढ़ाते हैं |
मान्यता है कि इससे सारी और इस पर में रासलीला भी होता है इस पर्व में सभी के घरों में चहल-पहल होती हैं और सबके घरों में मेहमानों का आना जाना लगा रहता है। इस त्यौहार में उपवास भी रखा जाता है और कृष्ण भगवान की पूजा भी किया जाता है। गाय के गोबर से आंगन की लिपाई पुताई कर नहा कृष्ण भगवान और राधा मां की पूजा किया जाता है |
कृष्ण अष्टमी का व्रत कैसे किया जाता है ?
पूरा दिन निष्ठा पूर्वक व्रत रखने के बाद शाम के समय आरती पूजा अर्चना करके भगवान कृष्ण को मलती चढ़ाया जाता है और रात के 12:00 बजे भगवान कृष्ण की जन्म होने के बाद फरार किया जाता है और सुबह होने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करके उपवास तोड़ा जाता है।
यह पूजा 3 दिन की होती है पहला दिन जन्म और दूसरा दिन पूजा और तीसरा दिन भगवान का विसर्जन कर उन्हें सच्चे दिल से विधायक दिया जाता है और यह पूजा के बाद भगवान कृष्ण अपने भगवान कृष्ण को बचपन से ही दही और मक्खन बहुत पसंद था। इसलिए उन्होंने माखन चोर भी कहा जाता है।
मान्यता है कि कृष्ण भगवान को दूध दही और मक्खन चलाने पर वह बहुत खुश होते हैं और अपने भक्तों को मुसीबत में सहायता करते हैं। कृष्ण भगवान के अनेकों नाम है। उन्हें द्वारकाधीश भी कहते हैं कृष्ण भगवान बचपन से ही नटखट और शैतान थे वह अपनी मां को बहुत परेशान करते थे वे सभी के घरों में जाकर माखन चुराकर खाते थे और छुप जाते थे और सभी गोपियां मां यशोदा को ताना देती थी तुम्हारा लल्ला ने तो मेरा सारा माखन खा लिया और कृष्ण भगवान यह बात सुनकर मुस्कुराते थे।
यशोदा मां को बहुत गुस्सा आता था। कृष्ण भगवान की 16000 रानियां थी और वह राधा से प्रेम करते थे राधा के साथ वृंदावन में रास रचाते थे और उनकी मुरली की सुरीली आवाज सुनकर सभी गोपियां मोहित होकर दौड़ी चली आती की मुराद पूरी करते इनके संबंध में एक दंतकथा भी प्रसिद्ध है। एक समय की बात है।
बहुत सारी गोपियां नदी में स्नान कर रही थी। तभी कृष्ण भगवान वहां आकर चोरी से सभी के कपड़े कदम की डाली पर रख दिए थे। काफी आरजू विनती करने के बाद उनके डाली पढ़ते हुए कपड़े उतार कर उन्होंने दे दिए तभी तभी गोपियां की लाज बच पाई थी ।
कृष्ण के जीवन की कहानियों पर आधारित भारत के विभिन्न हिस्सों में कई रीति-रिवाज विकसित हुए हैं। उदाहरण के लिए, यह कहा जाता है कि एक लड़के के रूप में शीर्ष पर बंधे धन के बर्तनों के साथ तेल वाले खंभे स्थापित किए जाते हैं। लड़कों ने कृष्ण के रूप में कपड़े पहने, फिर इन खंभों पर चढ़ने की कोशिश की ताकि पैसे मिलें जबकि दर्शक उन पर पानी छोड़ दें।
कृष्णा अष्टमी कैसे मनाई जाती है ?
देश के विभिन्न जगहों पर मूर्ति का निर्माण कर के मेले के रूप में भव्य आयोजन किया जाता है, साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भिन्न-भिन्न प्रकार के झूला एवं विभिन्न तरह का खाने-पीने का खिलौने का दुकान लगाया जाता है। हिंदू धर्म के लोग पूरी श्रद्धा एवं निष्ठा पूर्वक कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना करते हैं साथ ही साथ दही एवं मक्खन मिठाई एवं फल चढ़ाते हैं |
मान्यता है कि इससे सारी और इस पर में रासलीला भी होता है इस पर्व में सभी के घरों में चहल-पहल होती हैं और सबके घरों में मेहमानों का आना जाना लगा रहता है। इस त्यौहार में उपवास भी रखा जाता है और कृष्ण भगवान की पूजा भी किया जाता है। गाय के गोबर से आंगन की लिपाई पुताई कर नहा कृष्ण भगवान और राधा मां की पूजा किया जाता है |
कृष्ण अष्टमी का व्रत कैसे किया जाता है ?
पूरा दिन निष्ठा पूर्वक व्रत रखने के बाद शाम के समय आरती पूजा अर्चना करके भगवान कृष्ण को मलती चढ़ाया जाता है और रात के 12:00 बजे भगवान कृष्ण की जन्म होने के बाद फरार किया जाता है और सुबह होने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करके उपवास तोड़ा जाता है।
यह पूजा 3 दिन की होती है पहला दिन जन्म और दूसरा दिन पूजा और तीसरा दिन भगवान का विसर्जन कर उन्हें सच्चे दिल से विधायक दिया जाता है और यह पूजा के बाद भगवान कृष्ण अपने भगवान कृष्ण को बचपन से ही दही और मक्खन बहुत पसंद था। इसलिए उन्होंने माखन चोर भी कहा जाता है।
मान्यता है कि कृष्ण भगवान को दूध दही और मक्खन चलाने पर वह बहुत खुश होते हैं और अपने भक्तों को मुसीबत में सहायता करते हैं। कृष्ण भगवान के अनेकों नाम है। उन्हें द्वारकाधीश भी कहते हैं कृष्ण भगवान बचपन से ही नटखट और शैतान थे वह अपनी मां को बहुत परेशान करते थे वे सभी के घरों में जाकर माखन चुराकर खाते थे और छुप जाते थे और सभी गोपियां मां यशोदा को ताना देती थी तुम्हारा लल्ला ने तो मेरा सारा माखन खा लिया और कृष्ण भगवान यह बात सुनकर मुस्कुराते थे।
यशोदा मां को बहुत गुस्सा आता था। कृष्ण भगवान की 16000 रानियां थी और वह राधा से प्रेम करते थे राधा के साथ वृंदावन में रास रचाते थे और उनकी मुरली की सुरीली आवाज सुनकर सभी गोपियां मोहित होकर दौड़ी चली आती की मुराद पूरी करते इनके संबंध में एक दंतकथा भी प्रसिद्ध है। एक समय की बात है।
बहुत सारी गोपियां नदी में स्नान कर रही थी। तभी कृष्ण भगवान वहां आकर चोरी से सभी के कपड़े कदम की डाली पर रख दिए थे। काफी आरजू विनती करने के बाद उनके डाली पढ़ते हुए कपड़े उतार कर उन्होंने दे दिए तभी तभी गोपियां की लाज बच पाई थी ।
कृष्ण के जीवन की कहानियों पर आधारित भारत के विभिन्न हिस्सों में कई रीति-रिवाज विकसित हुए हैं। उदाहरण के लिए, यह कहा जाता है कि एक लड़के के रूप में शीर्ष पर बंधे धन के बर्तनों के साथ तेल वाले खंभे स्थापित किए जाते हैं। लड़कों ने कृष्ण के रूप में कपड़े पहने, फिर इन खंभों पर चढ़ने की कोशिश की ताकि पैसे मिलें जबकि दर्शक उन पर पानी छोड़ दें।
महाराष्ट्र में, जहाँ इस त्यौहार को गोविंदा के नाम से जाना जाता है, छाछ से युक्त बर्तनों को सड़कों के ऊपर लटका दिया जाता है। लड़कों की टीमें तब मानव पिरामिड बनाती हैं जो एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन सबसे बर्तन को तोड़ सकता है।
कई रंगीन किंवदंतियां कृष्ण के जीवन के बारे में बताती हैं और वे हिंदू लेखन में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। एक वयस्क के रूप में, उन्हें सबसे अधिक बार एक नर्तकी या प्रेमी के रूप में चित्रित किया जाता है, अक्सर बांसुरी बजाते हुए और महिलाओं को निहारते हुए। एक कहानी में, यह कहा जाता है कि कई सिर वाले नाग कालिया को पराजित करके नृत्य करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप और उसके बाहर हिंदुओं द्वारा जन्माष्टमी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।